Red fort trials….knowledge table part-2

अपने मुल्क़ की आज़ादी को हासिल करने के लिये, हर ग़ुलाम कौम को लड़ने का अधिकार है। क्योंकि, अगर उनसे यह हक़ छीन लिया जाये, तो इसका मतलब यह होगा कि एक बार यदि कोई कौम ग़ुलाम हो जाये, तो वह हमेशा ग़ुलाम होगी।’’ …….बीटन

लाल किला

हिंदुस्तान के इतिहास में ‘लाल किला ट्रायल’ के नाम से प्रसिद्ध आज़ाद हिन्द फ़ौज के इस ऐतिहासिक मुक़दमे के दौरान उठे नारे ‘लाल किले से आई आवाज-सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़’ ने उस समय मुल्क़ की आज़ादी के हक़ के लिये लड़ रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बाँध दिया था। वकील भूलाभाई देसाई इस मुक़दमे के दौरान जब लाल किले में बहस करते, तो सड़कों पर हज़ारों नौजवान नारे लगा रहे होते। पूरे देश में देशभक्ति का एक ज्वार सा उठता…..

5 नवम्बर, 1945 से 31 दिसम्बर, 1945 यानी 57 दिन तक चला यह मुक़दमा हिन्दुस्तान की आज़ादी के संघर्ष में टर्निंग पाईंट था। यह मुक़दमा कई मोर्चों पर हिन्दुस्तानी एकता को मज़बूत करने वाला साबित हुआ। मेजर जनरल शाहनवाज़ को मुसलिम लीग और लेफ़्टिनेंट कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर से मुक़दमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन वतनपरस्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा बनाई गई डिफेन्स टीम को ही अपनी पैरवी करने की मंजूरी दी। मजहबी जज्बात से ऊपर उठकर सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़ ने जो फ़ैसला लिया, वह काबिले तारीफ था……..

अभियोग की कार्यवाही मीडिया और जनता दोनों के लिए खुली हुई थी। जैसे-जैसे आज़ाद हिंद फ़ौज के बहादुरी के किस्से देशवासियों को मालूम चलते थे, उनका जोश बढ़ता जाता था। इस मुक़दमे के जरिये ही उन्हें मालूम चला कि आज़ाद हिंद फ़ौज ने भारत-बर्मा सीमा पर अंग्रेज हुक़ूमत के ख़िलाफ़ कई जगहों पर जंग लड़ी थी और एक वक़्त तो 14 अप्रैल 1944 को कर्नल एस. ए. मलिक की लीडरशिप में आज़ाद हिंद फ़ौज की एक टुकड़ी ने मणिपुर के मोरांग में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा तक लहरा दिया था। आज़ाद हिंद सरकार की ओर से कर्नल मलिक ने ढाई महीने तक मोरांग को मुख्यालय बनाकर इस प्रदेश पर शासन किया…..

मुक़दमे के दौरान पूरे मुल्क़ में राष्ट्रवाद का माहौल पैदा हो गया। लोग अपने देश के लिये मर मिटने को तैयार हो गये। सारे मुल्क़ में सरकार के ख़िलाफ़ धरने-प्रदर्शन हुये, हिन्दू-मुसलिम एकता की सभाएं हुईं। अंग्रेज हुकूमत ने सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़ पर ब्रिटिश सम्राट के ख़िलाफ़ बग़ावत करने का इल्जाम लगाया। लेकिन भूलाभाई देसाई की शानदार दलीलों ने इस मुक़दमे को आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों के हक़ में कर दिया। अदालत के सामने उन्होंने दो दिन तक लगातार अपनी दलीलें रखीं…..

इस ट्रायल ने पूरी दुनिया में आज़ादी के लिये लड़ रहे लाखों लोगों के अधिकारों को जागृत किया। सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज़ के अलावा आज़ाद हिन्द फ़ौज के अनेक फ़ौजी जो जगह-जगह गिरफ़्तार हुये थे और जिन पर मुक़दमे चल रहे थे, वे सब रिहा हो गय….

अंग्रेजों को लगने लगा कि हिन्दुस्तानी फ़ौजों की पूरी हमदर्दी आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ है। उन्हें हिन्दुस्तानी फ़ौजों की वफ़ादारी पर शक होने लगा। वे समझ गये कि जिस देश का सिपाही आज़ादी के लिये आमादा हो जाये, उसे ज़्यादा दिन ग़ुलाम बनाये नहीं रखा जा सकता….

लाल किला ट्रायल के प्रभाव से ही नौसेना और वायु सेना में विद्रोह हुआ और कई जगह अनेक टोलियों
में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह की हवा फैल गई। कामगार, आम राजनैतिक हड़ताल पर चले गये तथा आम जीवन अस्त-व्यस्त हो गया….

लंदन में ब्रिटिश सरकार ने अविलंब हिंदुस्तान छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। ब्रिटिश सरकार की ओर से एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया। जिसका काम भारत से ब्रिटिश शासन हटाने की योजना तैयार करना था। बहरहाल, हिन्दुस्तानी तारीख की इस घटना ‘लाल किला ट्रायल’ के 18 महीने बाद यानी 15 अगस्त, 1947 को हमारा मुल्क़ आज़ाद हो गया…..

…….रामेश्वर मिश्र

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